शंका - पूज्यश्री गुरुवर के चरणों में नमोऽस्तु! नमोऽस्तु! नमोऽस्तु! गुरुवर! मेरी शंका नहीं है, समझ है। बोलते हैं कि पञ्चम काल में शुद्धोपयोगी मुनि नहीं होते, परन्तु मैं जब भी विद्यासागर जी महाराज को देखती हूँ तो लगता है कि पञ्चमकाल में यह वही स्वरूप है|
- श्रीमती इन्दिरा जैन, मुंबई
समाधान - बिल्कुल, इसमें कोई संशय नहीं। जो लोग कहते हैं कि पञ्चमकाल में मुनि नहीं होते, वे गुरुदेव को देख लें, सब कुछ समझ में आ जाएगा कि मुनि क्या होते हैं? पण्डित कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री इसी से तो बदले थे और उन्होंने कहा था कि मैं अपने सारे मित्रों से कहना चाहूँगा- 'जिनकी मुनियों से श्रद्धा उठ चली है, वह एक बार आचार्य महाराज के दर्शन कर लें। मुझे पक्का विश्वास है, उनकी धारणा अवश्य बदलेगी।' उन्होंने कहा कि पहले मैं णमोकार के शेष 3 पदों का उच्चारण नहीं करता था। जबसे मैंने आचार्य महाराज के दर्शन किए हैं, मुझे पाँचों पद सार्थक दिखने लगे। णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं व णमो लोए सव्वसाहूणं में तो आचार्य महाराज की मुद्रा ही मेरी आँखों में झलकती है।