शंका - गुरुवर के चरणों में बुढ़ार जैन समाज का नमोऽस्तु! गुरुवर! मैंने प्रत्यक्ष देखा है कि आचार्यश्री जब अमरकण्टक में थे, अमरकण्टक का कुआँ पहाड़ के ऊपर था और उनके आने के पहले उसमें पानी बिल्कुल नहीं था। जैसे ही गुरुवर के पहुँचने की सूचना पहुँची, इतना पानी उस कुएँ में आ गया कि पूरा चौका चला और सैकड़ों-हजारों लोगों ने उसका लाभ लिया।
- श्री मनीष जैन
समाधान - अभी आपको बताऊँ यदि आपने यह प्रसंग छेड़ा है, तो थोड़ा संशोधन कर दें। मैं उस समय वहाँ पर था। वहाँ की घटना कुछ और है। क्षेत्र में पानी की बहुत बड़ी समस्या थी। ऊपर बोरिंग हुई, 250 फीट बोरिंग के बाद सवा इंच, एक इंच पानी मिला। बोरिंग में भी पानी नहीं मिला। कुएँ के बिना तो क्षेत्र हो ही नहीं सकता और कुछ समय नीचे से पानी आता था तो उसमें 80 हाथ रस्सी लगती थी यानी पानी 120 फीट गहरा था। अपना जो स्थान है। अमरकण्टक का, वह रोड लेवल से 120 फीट ऊपर है। अमरकण्टक की सबसे ज्यादा हाइट पर है, सी-लेवल से 3600 फीट ऊँचाई है। वहाँ पर पानी चाहिए, कुआँ चाहिए, कैसे हो? कमेटी के लोगों ने सोचा कि चलो कुआँ खोदो, कुछ उपाय करेंगे। पूरी बॉक्साइट की पहाड़ी है। दिनभर में बमुश्किल एक फीट खुदता था। दस फरवरी से कुए की खुदाई शुरु हुई। अप्रैल का महीना आ गया, एक फीट खुदता था और खोदते-खोदते 47 फीट खुद गया। पानी की तो बात बहुत दूर थी, नमी तक नहीं आई। अमरकण्टक के संस्थापक अध्यक्ष थे, उदयचन्दजी कोतमा वाले। एक रोज वह मेरे पास आए, बोले महाराज कैसे काम होगा? बरसात आने वाली है कुआँ खुदा नहीं है। दिनभर में एक फीट खुदता है, पानी का कोई निशान नहीं। कमेटी का टारगेट था कि 70 फीट खोदेंगे व साइड की बोरिंग करेंगे तो शायद पानी आ जाए। कुआँ 70 फीट खोदना भी मुश्किल है। क्या किया जाए? उस दिन गुरुदेव के आहार उनके यहाँ ही हुए थे। मैंने पूछा- गुरुजी का आहार तुम्हारे यहाँ हुआ? उन्होंने बोला- हाँ महाराज! हमने बोला- गन्धोदक कहाँ है? उन्होंने कहा- महाराज! समझ गया।
अब आप कमाल सुनिए। उन्होंने गन्धोदक लेकर उस गड्ढे में डाला, उस दिन दो फीट कुआँ खुदा। आगे 49वें फीट में पानी आ गया और इतना पानी निकला कि धीरे-धीरे खोदते-खोदते 70 फीट खोदने। का टारगेट था, पर 62 फीट में रोकना पड़ा और पानी का ऐसा स्रोत निकला कि भरपूर पानी था। पहला पानी अक्षय तृतीया के दिन निकला और जिस ठेकेदार ने कुआँ खोदा उसने कहा- मैंने पूरे इलाके में 200 से ज्यादा कुए खोदे हैं पर इस जैसा स्रोत और ऐसा पानी पूरे इलाके में कहीं नहीं है। आज भी वह कुआँ क्षेत्र को पुजा रहा है। जो भी हो, गुरुदेव का चमत्कार है और भगवान् का प्रताप है। यह हो रहा है तो अब से धारणा बदल देना। कुए की वास्तविकता यही है और यह पूरे अमरकण्टक में चर्चा का विषय है, जबकि गुरुजी ने कुछ नहीं किया। वह कभी देखे भी नहीं, किसी से पूछा भी नहीं कि कुए में पानी आया या नहीं आया? वह अपने में रहते हैं, अपने में रमते हैं। और उनके निमित्त से सारे काम अपने आप हो जाते हैं।