शंका - गुरुदेव! नमोऽस्तु! आचार्यश्री में वह सारे गुण, सारी शक्तियाँ मौजूद हैं, जो तीर्थंकरों में होती हैं, क्या गुरुदेव भावी तीर्थंकर हैं ?
-श्री विकास जैन, मिर्जापुर
समाधान - देखो, यह सब घोषणा करना तो भक्ति का अतिरेक होगा। वह तीर्थंकर हैं, होंगे, नहीं होंगे इससे मतलब नहीं है। मैं तो यह मानता हूँ कि वे हम सब के उद्धारक हैं, जो हमारे उद्धारक हैं वे भले ही तीर्थंकर न हों पर उनका उपकार तीर्थंकरों से कम नहीं। ऐसा नहीं है कि हमने कभी तीर्थंकरों के युग में जन्म नहीं लिया होगा। हो सकता है हमने अनेक बार तीर्थंकरों के युग में जन्म लिया हो, लेकिन फिर भी हमारा हृदय उनसे न जुड़ा हो, हमारा जीर्णोद्धार नहीं हुआ। मरीचि भगवान् ऋषभदेव के युग में जन्मा, अहंकार में अकड़ा, 363 पथ का जनक बन गया और वही मरीचि जब शेर की पर्याय में था तो अमितगुण व अमितञ्जय नाम के दो मुनिराजों के साधारण वचनों का उस पर असाधारण प्रभाव पड़ गया। मरीचि के लिए भगवान् ऋषभदेव उतने काम के नहीं थे, जितने वह मुनिराज थे। इसलिए हम कहेंगे मेरे लिए चौबीस तीर्थंकर का वह कमाल नहीं हुआ जो गुरुदेव का हुआ है, इसलिए मैं उनके लिए सतत प्रणत रहूँगा।