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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • आचार्यश्री सभी मुनियों को चातुर्मास की आज्ञा देते हैं या महाराज अपने हृदय से करते हैं?

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    शंका - महाराज जी! नमोऽस्तु! मेरा प्रश्न है कि आचार्यश्री सभी मुनियों को चातुर्मास की आज्ञा देते हैं या महाराज अपने हृदय से करते हैं?

    - श्रीमती अनीता जैन

    समाधान - देखो, हमारे संघ के सभी साधु आचार्य महाराज की आज्ञा के बिना हिलते भी नहीं हैं। वह जहाँ की आज्ञा देते हैं, हम लोग वहीं जाते हैं। एक विशेषता और है उनकी कि वह कभी हम लोगों से पूछते भी नहीं हैं, राय भी नहीं मागते हैं कि तुम कहाँ करना चाहते हो? तुम्हारे पास कौन-कौन लोग आए थे? ऐसी कभी राय नहीं लेते। उनको जहाँ देना होता है, वहीं दे देते हैं और पूरा संघ उनकी बात को सिर माथे लेकर स्वीकारता है। एक उदाहरण है कि उनका आदेश आता है और उनके आदेश को हम किस प्रकार निर्वाह करते हैं। सन् 1991 की बात है, हम लोग मध्यप्रदेश के गोटेगांव में थे। गुरुदेव मुक्तागिरि में थे, चातुर्मास हेतु सम्पर्क किया तो उन्होंने कहा- मैं 500 किलोमीटर दूर हूँ, तुम लोग समझदार हो, अपनी अनुकूलता, उपयोगिता देखकर जहाँ चाहो, कर लो। हम लोगों ने सोचा- चलो गुरुदेव ने हम लोगों पर छोड़ा है तो सिवनी के बगल में एक छोटा-सा गाँव है छपारा, वहाँ पचासी घर की समाज है। हमने सोचा कि यह लोग बहुत दिनों से लगे हैं, चलो इस बार छपारा में चातुर्मास करें। मन में एक लोभ यह भी था कि इसी बीच अगर गुरुदेव मुक्तागिरि से रामटेक आ जाएँ तो दर्शन का भी सौभाग्य मिल जाएगा। हम लोगों ने छपारा के लिए विहार किया। छपारा के लोग बड़े उत्साह के साथ विहार करा रहे थे और छपारा से 27 किलोमीटर पहले लखनादौन पहुँचे। इसी बीच एक ब्रह्मचारिणी बहिन जी आईं जो आर्यिका बन गई हैं-आदर्शमति जी। बोलीं महाराज आप लोग कहाँ जा रहे हैं? हमने पूछा- क्या बात है? हम लोग तो छपारा का विकल्प लेकर चल रहे हैं। तो वह बोलीं- छपारा को तो महाराजश्री ने प्रशान्तमति व पूर्णमति माताजी के लिए दिया है। हम लोग वहीं रुक गए। वह जबलपुर में थीं, वहाँ से 100 किलोमीटर पीछे, पर उनके लिए दिया है तो अब तो वही जाएँगी, हम लोग नहीं जाएँगे। हुआ यह था कि हम लोग अपनी बात गुरुदेव को कम्युनिकेट नहीं कर पाए थे कि हम लोग कहाँ जा रहे हैं, उन्होंने सोचा होगा कि यह लोग छोटी जगह तो जाएँगे नहीं, तो उन लोगों को दे दिया। अब उनको दे दिया, हम एकदम नजदीक पहुँच गए। छपारा के लोगों को काटो तो खून नहीं, उनका सारा उत्साह खत्म। हमने कहा- भाई! हम गुरुदेव से उनके निर्णय को परिवर्तित करने के लिए सपने में भी नहीं कहेंगे। अगर गुरुदेव ने उनको छपारा दिया है तो छपारा वही जाएँगी। हम लोग वहीं रुके। संयोग से कटनी के लोग उसी दिन हमारे पास निवेदनपूर्वक आए। हमने अपने ब्रह्मचारी को साथ में भेज दिया। गुरुदेव को बताया कि हम लोग यहाँ तक आ गए थे। फिर मालूम पड़ा है कि माताजी को छपारा जाना है, तो हम लोगों को कहाँ जाना है? उन्होंने कहा- ठीक है, तुम लोग कटनी से सतना चले जाओ। 300 किलोमीटर रिवर्स हम लोगों का सतना चातुर्मास हुआ। ऐसा ही होता है और इसी प्रकार से पूरा संघ गुरु आज्ञा से बंधा हुआ होता है।


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