शंका - गुरुदेव! नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु! गुरुदेव! मेरा प्रश्न कल के ही प्रश्न से जुड़ा हुआ है। जिस प्रकार गलती होने पर गुरुदेव प्रायश्चित देते हैं उसी प्रकार जब वह प्रसन्न होते हैं, तो क्या करते हैं?
- श्रीमती साधना जैन झिरौता, किशनगढ़
समाधान - देखिए, प्रायश्चित देना आचार्य का दायित्व है। आपने पूछा कि प्रसन्न होकर वह कैसे प्रोत्साहित करते हैं? वह हमेशा प्रोत्साहित करते हैं। अगर कभी किसी का मन किसी कारण से बुझता हो तो कई बार वह एकान्त में बुलाकर भी मार्गदर्शन करते हैं। और उस घड़ी में ऐसा लगता है कि इनसे अच्छा मोटिवेटर कोई नहीं है। उन के वचनों में ऐसा जादू होता है कि सामने वाला अपने आप प्रोत्साहित हो जाता है और मुझे तो ऐसा लगता है कि उनकी वाक्शक्ति कुछ ऐसी है। मैं अपने जीवन का एक अनुभव बताता हूँ। सन् 1986 में मैं जब क्षुल्लक अवस्था में था, मेरे मन में एक बात कुछ दिनों से रह-रहकर आ रही थी कि मैं मुनि नहीं बन पाऊँगा। अपने आप आती थी कि मैं मुनि नहीं बन पाऊँगा और बनूंगा तो मुनि पद का निर्वाह नहीं होगा। करीब एक महीने तक यह द्वन्द्व मेरे भीतर चला। मैंने अपने मन की व्यथा गुरुचरणों में जाकर एकान्त में प्रकट की और गुरुदेव से कहा कि गुरुदेव कुछ दिनों से ऐसा हो रहा है। मुझे लग रहा है कि मैं मुनि नहीं बन पाऊँगा, अब मेरा क्या होगा? उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया, मेरे सिर पर हाथ रखा और कहा चिन्ता मत करो, सब ठीक हो जाएगा। तुम मुनि ही नहीं, अच्छे मुनि बनोगे और मुझसे कहा कल से मेरे बाजू में ही सोया करो। सोता तो पहले भी उन्हीं के कक्ष में था, पर थोड़ा दूर सोता था। बोले- अब बाजू में ही सोया करो। और उस दिन की रात से पता नहीं क्या जादू हुआ उनका, बस ऐसा उत्साह हुआ कि मुझे कब मुनि बनना है! कब मुनि बनना है! कब मुनि बनना है! मुझे लगता है कि यदि उस घड़ी में उनके पास नहीं गया होता, तो ऐसी स्थिति नहीं होती।