शंका - मेरे अन्तर्मन में विराजमान परमपूज्य गुरुवर को अनन्त बार प्रणाम करते हुए पूज्य मुनिवर के पावन चरणों में भी मैं अनन्त बार प्रणाम करता हूँ। पूज्य मुनिवर! अनेक बार मैंने देखा कि गुरुवर दिनभर संघ से सम्बन्धित समस्याओं का भी समाधान करते हैं, सबकी बात सुनते हैं, शाम को भी आवाज सुनते हैं, परन्तु अपने आवश्यक सामायिक आदि उत्कृष्ट रूप में कैसे नि:स्पृह भावों से करते हैं?
- डॉ. सत्येन्द्र जैन, दमोह
समाधान - देखिए, जो अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होता है, उसकी प्राथमिकता ही कुछ और होती है। हमें व आपको ऐसा लगता है कि वह संघ, समाज व अन्य निर्देशन कार्य में अपना समय देते हैं, परन्तु सच्चाई यह है कि उनकी प्राथमिकता यह नहीं है। उन्होंने अपनी पहली प्राथमिकता अपनी साधना को दे रखी है। इसलिए सभी चीजें सेकण्डरी हो जाती हैं। वे प्रमुख होती हैं जिसका वह पालन करते हैं।