शंका - आचार्यश्री के अन्दर ऐसा क्या है? कोई सम्मोहन है, कोई मन्त्र प्रयोग करते हैं कि हम सब एक झलक के लिए उनके वशीभूत हो जाते हैं?
- श्री शोभित जैन, जयपुर
समाधान - बस मैं तो यही मानता हूँ कि यह एक करिश्मा है। यह करिश्मा उनके त्याग व तपोमय महान् व्यक्तित्व का है, जो सहज स्फूर्त होता है, अनचाहे होता है। कल मैंने बताया था, उन्होंने कभी मन्त्रप्रयोग नहीं किया, किन्तु उनका व्यक्तित्व ही ऐसा है कि हर कोई मन्त्रमुग्ध हो जाता है। मैं एक दृश्य का साक्षी बना था दमोह में। गुरुदेव विराज रहे थे, कुण्डलपुर के महोत्सव के ठीक पहले। सन् 2001 की बात है, हमने दमोह में गुरुदेव की अगवानी की, आहारचर्या करके साथ-साथ लौटे। गुरुदेव ऊपर छत पर थे। वहाँ के एक मंदिर में शायद नन्हे मंदिर था, नन्हे मंदिर के प्रांगण में करीब 15 से 20000 लोग होंगे और गुरुदेव छत पर और मैं नीचे दालान में बैठ गया। मैं लोगों की एक्टिविटी को देख रहा था, लोग चातक की तरह गुरुदेव की ओर निहार रहे थे। करीब-करीब 15 से 20 मिनट हो गए, मैं ऐसे ही देखता रहा। फिर मुझसे रहा नहीं गया और मैं ऊपर गया, गुरुदेव को प्रणाम किया और कहा - गुरुदेव! देखो, कितनी देर से यह लोग आपकी एक झलक पाने के लिए तरस रहे हैं। आपको चातक की तरह देख रहे हैं। मैं इतनी देर से देख रहा हूँ, कम से कम एक बार आशीर्वाद तो दे दो। मेरे कहने से उनकी करुणा मुखरित हो गई, उन्होंने दोनों हाथ ऊपर करके आशीर्वाद दिया, उस घड़ी मैंने लोगों का जो उत्साह देखा, वह अद्भुत था। यह उनके पुण्य का प्रताप है। महान् व्यक्तियों का व्यक्तित्व ही अपने आप खींचता है, यही उनका आकर्षण है।