शंका - आचार्यश्री के लघुनन्दन गुरुवर! आप में आचार्यश्री की ही तरह समीचीन समकित समग्रता, आपकी वाणी, चर्या व व्यक्तित्व के रोम-रोम से झलकती है। ऐसे गुरुवर के चरणों में नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु! गुरुवर मेरी जिज्ञासा है कि आचार्यश्री ने 36 घण्टे लगातार साधना की है, ऐसी साधना उन्होंने कहाँ की? इसके बारे में थोड़ा बताइए।
- डॉ. सीमा जैन
समाधान - देखिए, गुरुदेव की साधना बहुत उच्च कोटि की रही और वह प्रारम्भ से ही साधक थे। अभी हम छतरी योजना में अजमेर में चातुर्मास किए, जो गुरुदेव की तपोभूमि है। अजमेर के चातुर्मास में जब तक ज्ञानसागर जी महाराज का सान्निध्य था, जब तक ज्ञानसागर जी के साथ रहे उन्होंने केवल अध्ययन व ज्ञानसागर जी महाराज की सेवा की। समाधि के उपरान्त उन्होंने कठोर तपस्या व साधना का शुभारम्भ किया। अजमेर के विषय में मुझे मूलचन्द जी लुहाड़िया ने बताया और वहाँ अजमेर के लोगों ने भी मुझे बताया कि वह अजमेर में जब सोनीजी की नसियाँ में चातुर्मास करते थे तो आहार करके सीधे आँतेड़ की छतरी में आ जाते थे। वहीं स्वाध्याय करते थे, पूरा दिन बिताते थे, रात्रि रहते थे और फिर आ जाते थे। उपवास में कहीं कहीं बाहर 24-24 घण्टे या उससे ज्यादा खड़े रहकर या बैठकर उन्होंने तपस्या की। 36 घण्टे तक लगातार साधना करने का उनका जो उपक्रम था, वह फिरोजाबाद में था 1975 में। इसके अलावा और कहीं उन्होंने लगातार 36 घंटे तक साधना की, यह मेरे स्मरण में नहीं है, लेकिन 24 घंटे की साधना तो कई बार की और वह अक्सर करते रहते हैं। यह उनकी तपस्या है, यह उनकी साधना है, हम उसको प्रणाम करते हैं।