शंका - महाराजश्री! नमोऽस्तु! आचार्यश्री का पञ्चम काल में जन्म लेना हमारे लिए तो पुण्य का कारण बन गया, परन्तु उनके लिए क्या है?
- श्रीमती चन्द्रकला पाटनी, राँची
समाधान - देखो, उनके लिए क्या है यह वे जानें, हमारे लिए क्या है यह हम पहचानें। निश्चित ही हम सबका महान् पुण्य है कि परमपूज्य गुरुदेव के युग में हमने जन्म लिया। आज से अगर 50 वर्ष और पीछे हम जन्मे होते तो शायद यह सौभाग्य नहीं मिलता। इसलिए हम बड़े भाग्यशाली हैं कि उनका सान्निध्य प्राप्त करने का हमें मौका मिल रहा है। आपने पूछा उनके लिए, मैं तो सोचता हूँ कि अच्छा किया कि उन्होंने अपनी साधना में कुछ कसर रख दी इसलिए यहाँ आचार्य बनकर जन्मे। अगर और थोड़ा अपग्रेड हो जाते तो विदेह में। होते, हम सब लोग कहाँ जाते। कहीं न कहीं, कोई न कोई नैमित्तिक सम्बन्ध उनके साथ जुड़ा था। उनके निमित्त इस पञ्चमकाल में भक्तों का कल्याण होना था, जिनधर्म की पताका फहरनी थी, श्रमण संस्कृति का उत्थान होना था। इसीलिए सारे संयोग बने, वे इस विषमकाल में रहे, हम सबके लिए भगवान् स्वरूप में प्रकट हुए और आज हम उनकी अर्चना कर रहे हैं।