शंका - गुरुवर के चरणों में कोटि कोटि नमन। बात 1979 की है, प्रसंग मदनगंज किशनगढ़ के पञ्चकल्याणक का था, उसमें महाराज जी दो कल्याणक बीतने के बाद पहुँचे, इसका स्मरण है मुझे। वह दीक्षा कल्याणक के दिन वहाँ पहुँचे और उन्होंने दीक्षा कल्याणक के दिन जो प्रवचन दिए उसमें कहा कि उन दो दिनों में हमारा क्या काम था? वह तो आप लोगों का काम था, मेरा काम तो आज है। आज वैराग्य का दिन है मैं तो इसलिए आया हूँ। इसी बीच मैंने किशनगढ़ में उनके पञ्चकल्याणक की पुस्तक है वह पढ़ी, उन्होंने कहा कि उसमें भी एक रहस्य था कि मैं 2 दिन क्यों नहीं आया और आज क्यों आया। उन्होंने इसमें राग एवं वीतरागता का भाव बताया। पर महाराजश्री आज भी इतने पञ्चकल्याणक कराते हैं और सभी दिन रहते हैं। समाधान दीजिए।
- श्रीमती सन्तोष गोधा, उदयपुर
समाधान - देखिए, गुरुदेव ने अपने प्रवचनों में कई बार बोला है कि पञ्चकल्याणकों में दो दिन आपके और तीन दिन हमारे। गर्भ, जन्म राग की बात है। उसमें मुनि महाराज रहें या न रहें कोई जरूरी नहीं। लेकिन तप कल्याणक तो बिना मुनि महाराज के होगा नहीं। तप, ज्ञान और मोक्ष यह तीन कल्याणक हमारे। आपको स्मरण होगा कि गुरुदेव कितनी विषम परिस्थिति में किशनगढ़ पधारे थे। वह बीमार थे। जयपुर में गम्भीर रूप से बीमार थे और उस बीमारी की हालत में 1 दिन में, अन्तराय के बाद भी 80 किलोमीटर वे कैसे चले थे। उनकी तो स्थिति इतनी क्षीण हो गई थी कि लोग शंकित थे कि वे किशनगढ़ पहुँच पाएँगे कि नहीं। पञ्चकल्याणक का दिन तो घोषित है, पर वह अपने मनोबल के बल पर गए और ठीक दीक्षा कल्याणक के दिन पहुँच गए। उन्होंने हर बात को सकारात्मक बनाने का अपना स्वभाव बना लिया। आप लोगों को इस बात का कष्ट न हो कि गुरुदेव आए तो दो दिन लेट हो गए। उन्होंने अपनी बात की व्याख्या कर दी कि देखो मैं सही समय पर आया हूँ, मेरा काम तो आज ही है, बाकी दो दिन तो तुम रागियों का काम है। राग तुम रखो। शायद प्रकृति को यह इष्ट नहीं था कि मैं इसमें उपस्थित होऊँ, इसलिए मुझे विलम्ब हुआ। उन्होंने यह नहीं कहा कि मैं गर्भ व जन्म कल्याणक में आता नहीं। उन्होंने कहा कि मैं आ नहीं पाया तो जो हुआ वह अच्छा हुआ।