पैर में तकलीफ बढ़ती ही जा रही थी, आचार्य महाराज कक्ष में आये और मुझसे पूछने लगे - क्यों महाराज कैसी है तकलीफ? मैंने कहा - बढ़ती ही जा रही है। आचार्य श्री बोले - इस रोग में कोई औषधि तो काम करती ही नहीं है, समता ही रखनी होगी। मूलाचार में साधु को सबसे बड़ी औषधि बताई है बताओ वह क्या है ? मैंने कहा - जी आचार्य श्री समता खुश होकर आचार्य श्री बोले - बहुत अच्छा ऐसी ही समता बनाए रखना। मैंने कहा - आपका आशीर्वाद रहा तो सब सहन हो जावेगा, आप आ जाते हैं तो साहस बढ़ जाता है। आचार्य श्री कहते हैं भैया और मैं क्या कर सकता हूँ, आशीर्वाद ही दे सकता हूँ। मैंने कहा - आपके आशीर्वाद से ही मुझे सब कुछ मिल जाता है।