विहार करते हुए चले जा रहे थे रास्ते में शिष्य ने आचार्य गुरूदेव से निवेदन किया कि आचार्य श्री जी इस बार ऐसे स्थान पर ले चलो जहाँ पर अभी तक नहीं गये हों, फिर क्या था, आचार्य श्री थोड़े चिन्तन में खो गये ऐसा लगा जैसे वह यह सोच रहे हों कि हम कहाँ नहीं गये, फिर मुस्कुराते हुए बोले - भैया कहाँ है ऐसा स्थान - जहाँ पर यह जीवन गया हो, प्रत्येक स्थान पर तो यह जीव जन्म-मरण कर चुका है | बस एक ही स्थान बचा है, जहाँ हम नहीं गये वह है मोक्ष। हम उसी मोक्षमार्ग पर चल रहे हैं अनवरत इसी मार्ग पर बढ़ते चलो। यह सुनकर सभी ने कहा जी आचार्य श्री हम सभी वहीं चलने के लिए तैयार हैं। सच में गुरूदेव की प्रत्येक क्रिया मोक्ष मार्ग पर चलने का उपदेश देती है।