एक बार रास्ते में विहार करते हुए आ रहे थे। एक गाँव से गुजरना हुआ वहाँ दुकान पर एक भजन चल रहा था। "दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समायी, तूने काहे को दुनिया बनायी।” इस पंक्ति को सुनकर आचार्य श्री के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आ गयी तो साथ में चलने वाले सभी हँसने लगे। आचार्य महाराज ने कहा - ऐसा कहना ठीक नहीं बल्कि ऐसा कहो "दुनिया बसाने वाले क्या तेरे मन में समायी, तूने काहे को दुनिया बसायी।” संसार में तुम ही फँसे हो, गृहस्थी तुमने ही बसायी है खुद को दोषी कहो, भगवान को दोषी मत कहो।