आज के युग में तत्वज्ञान की प्राप्ति अति दुर्लभ हो गई है। जैसे निर्धनता में धन, निर्जन वन में घर और केले के वृक्ष में सार तत्त्व मिलना दुर्लभ है, वैसे ही इस युग में तत्त्वज्ञान की प्राप्ति होना बहुत दुर्लभ है। एक तो तत्त्वज्ञान की बात करने वाले बहुत कम है, उसे सुनने वाले उससे भी कम है और उसे धारण करने वालों की संख्या उससे भी बहुत कम है।
आर्यिका दीक्षा दिवस सन् 9-02-2006 के अवसर पर आचार्य श्री जी ने वाणी की दुर्लभता के बारे में आचार्य ज्ञानसागर जी का एक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि एक बार आचार्य ज्ञानसागर जी के प्रवचन को टेप करने के लिए प्रयास किया गया। पहले प्रवचन आदि रिकॉर्ड नहीं होते थे दो चाक वाला ग्रामोफोन रख दिया, मैं भी पास में बैठा था मैं भी डर गया थोड़ा बाजू में खिसक गया (हँसी) बाद में देखा प्रवचन रिकार्ड हुआ कि नहीं। देखा तो कैसेट खाली एक भी शब्द नहीं आया, क्योंकि कैसेट उल्टी फंसा दी थी। ये है महापुरुषों की वाणी की दुर्लभता।