भक्ष्याभक्ष्य पदार्थों का प्रकरण चल रहा था तब आचार्य श्री जी ने कहा कि- बूंद-बूंद से घड़ा भरता है। कछुआ चाल चलते हैं तो भी मेले में पहुँच ही जाते हैं। इन बातों को ध्यान में रखते हुए थोड़ा-थोड़ा त्याग सभी आवकों को समय-समय पर करते रहना चाहिए। जिससे कुलाचार एवं श्रावक धर्म नष्ट होता हो, ऐसी वस्तुओं का दूर से ही त्याग कर देना चाहिए। तब मैंने कहा- आचार्य श्री जी जिनका इन चीजों का पहले से ही त्याग हो, उन्हें क्या करना चाहिए? तब आचार्य श्री जी ने कहा कि- जिनका अभक्ष्य का त्याग है, उन्हें भक्ष्य पदार्थों का त्याग करना प्रारंभ करना चाहिए। अभक्ष्य का त्याग वास्तव में त्याग में नहीं आता। सही त्याग तो भक्ष्य का त्याग है। उदाहरण देते हुए कहा कि- जैसे सभ्य लोग कभी गाली तो देते ही नहीं हैं एवं बहुत कम बोलते हैं। इसी प्रकार मधु, मद्य, मांस का त्याग बालकों का त्याग माना जाता है। बड़ों को तो इससे और आगे बढ़ना चाहिए। अजान फल (जिस फल के बारे में जानकारी नहीं है) का भी त्याग होना चाहिए। क्योंकि वह स्वास्थ्य के लिए अहितकारी हो सकता है।