सर्वोदय तीर्थ अमरकंटक की ओर संघ का बिहार चल रहा था। रात्रि विश्राम के लिए एक गाँव में रुकना हुआ। प्रातःकाल वहाँ से बिहार हुआ एक बकरे ने भी साथ में चलना प्रारंभ किया। दूसरे गाँव तक साथ में चलता रहा वह बार-बार मुझसे सटकर चलने लगता। थोड़ी देर बाद आचार्य श्री जी के पास पहुँच जाता। दोपहर में सामयिक के उपरांत पुनः बिहार हुआ फिर वही बकरा आ गया और शाम तक चलता रहा। रात्रि में गायब हो गया पुनः सुबह विहार हुआ तो रास्ते में बकरा फिर मिल गया। वह बकरा दो दिन से साथ में चल रहा था लेकिन किसी ने उसे कुछ भी खाते-पीते नहीं देखा। इस बात को लेकर सब के मन में शंका उत्पन्न हुई कि- यह बकरा है कि कुछ और इस संदेह को दूर करने के लिए किसी सज्जन ने उसकी फोटो खींच ली लेकिन उसकी फोटो कैमरे में नहीं आई। यह देखकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ तब मैंने आचार्य श्री जी से कहा कि- जो दो दिन से विहार में बकरा चल रहा था उसकी आवक ने फोटो ली तो उसकी फोटो कैमरे में नहीं आई। यह सुनकर आचार्य श्री जी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया 'कुंथु' औदारिक शरीर की फोटो आती है, वैक्रियिक शरीर की नहीं।
हम सभी लोग समझ गए कि- औदारिक शरीर मनुष्य और तिर्यंचों का होता है और वैक्रियिक शरीर नारकियों एवं देवों का होता है। नारकी तो यहाँ पर आ नहीं सकते इसलिए देव ही यहाँ बकरा बनकर आया होगा।