सन् 2007 में गुरूवर के आशीर्वाद एवं आज्ञा से पूज्य मुनिश्री पुष्पदंत सागर जी एवं मैं (कुन्थुसागर) आमगाँव में प्रवास कर रहे थे। वहाँ पर पंचकल्याणक होना था। एक दिन अजैन दम्पति मेरे पास आकर प्रणाम करके बैठ गए। उनके दर्शन करने के तरीके से लग रहा था कि वे जैनेत्तर बंधु हैं। उन्होंने कहा- महाराज जी आप भी आशीर्वाद दीजिए ताकि मैं हमेशा ऐसा ही स्वस्थ्य रह सकूँ। उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले उनको केंसर रोग था। जबलपुर मेडिकल हॉस्पिटल में भर्ती थे। उस समय आचार्य श्री जी मढ़िया जी क्षेत्र पर विराजमान थे। डॉक्टर ने चलने-फिरने को मना दिया था पर सुना जैनियों के महान् गुरु यहाँ पर आए हुए हैं तो मैंने सोचा मरता क्या नहीं करता ? मरना तो है ही क्यों न ऐसे गुरु के दर्शन कर लूँ। फिर क्या था हम लोग गुरुजी के दर्शन करने गए उनका आशीर्वाद मिलते ही मेरे शरीर में शक्ति का संचार हो गया। डॉ. भी आश्चर्य कर रहा था इतना आराम कैसे मिल गया। यह सब उन्हीं गुरु की कृपा थी। और वह दोनों पति-पत्नी की आंखो से गुरु के प्रति कृतज्ञता के आंसु झलक आए। इसे कहते है श्रद्धा का चमत्कार एवं गुरुजी की असीम कृपा।