प्रायः आजकल व्यक्ति एक, दो शास्त्रों का अध्ययन कर लेते हैं। और समझने लगते हैं कि मेरे अन्दर दूसरों को उपदेश देने की क्षमता आ गई है। वे दूसरों को उपदेश देने ही लगते हैं। लेकिन वे इस बात को भूल जाते हैं कि उपदेश देने का अधिकारी कौन है? किसी साधक ने आचार्य श्री जी से शंका व्यक्त करते हुए कहा कि- वक्ताओं को किस प्रकार का उपदेश देना चाहिए एवं साधु के लिए भाषा समिति, सत्यधर्म, सत्य महाव्रत एवं वचन गुप्ति का उपयोग कहाँ एवं किस लिए करना चाहिए ? तब आचार्य श्री जी ने समाधान देते हुए कहा कि- वक्ता को अपना आचरण इस प्रकार रखना चाहिए एवं उपदेश भी ऐसा ही देना चाहिए जिससे स्वयं एवं दूसरों के संवर एवं निर्जरा के स्रोत खुलते चले जाए एवं कर्म आस्रव के स्रोत बंद हो जाए। मोक्षमार्ग विकास की ओर होना चाहिए विनाश की ओर नहीं।
आपके उपदेश से शंकाओं का समाधान ही न होता जाए बल्कि भव्य जीव कल्याण मार्ग पर लग जाए। यही सच्चा उपदेश है। अहित से हित की ओर आ जाए ऐसे हित, मित एवं प्रिय वचन बोलना ही भाषा समिति है। आगे उन्होंने बताया कि- उपदेश के समय भाषा समिति, अध्यापन के समय सत्य धर्म, अपने लिए एवं जीव हिंसा से बचने के लिए सत्यमहाव्रत और ध्यान के समय वचन गुप्ति काम करती है। इस प्रकार चार प्रकार के वचनों का प्रयोग होता है। भाषा समिति, सत्यधर्म आदि का प्रयोग करने के लिए विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है।