Jump to content
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • सल्लेखना

       (0 reviews)

    “सम्यक्काय कषाय लेखना - सल्लेखना "- सम्यक् प्रकार से शरीर और कषायों को कृष करने का नाम सल्लेखना है। शरीर के पोषण से कषायों में वृद्धि होती है इसलिए शरीर का पोषण हमारे लिए अभिशाप सिद्ध हो जाता है, क्योंकि इससे कर्मों का बंध जारी रहता है रुकता नहीं है। उसी प्रकार यदि कषायों के वशीभूत होकर शरीर को तपाया जाता है तो भी वह हमें और अभिशाप सिद्ध होता है क्योंकि कषाय के माध्यम से बन्ध जारी रहता है। इसी बात को समझाते हुए आचार्य महाराज ने यह कहा कि सल्लेखना मत्यु के समय ही होती हो ऐसा नहीं है, किन्तु सल्लेखना प्रति समय भी चल सकती है क्योंकि सल्लेखना का अर्थ है- काय के प्रति निरीहता। सल्लेखना में मात्र शरीर को ही क्षीण नहीं किया जाता, बल्कि कषायों को भी क्षीण किया जाता है। जिस प्रकार वृक्ष की ऊपरी वृद्धि करने के लिए नीचे की हरी-भरी पत्ती की कटिंग कर दी जाती है उसी प्रकार से व्रतों की वृद्धि करने के लिए शरीर के प्रति निरीहता होना और कषायों का कृष् होना आवश्यक है।

     

    How are you old? तुम कितने पुराने हो गये हो। यह मुहावरा अपने आप में बहुत मायना रखता है। मत्यु महोत्सव को याद कराता है। आचार्य महाराज हम सभी को यही शिक्षा दे रहे हैं कि प्रत्येक साधक, धर्मात्मा को प्रतिक्षण कषायों को कम करते जाना चाहिए। आयु का कोई भरोसा नहीं है इसलिए आज एवं अभी आत्मकल्याण में प्रवृत्त हो जाना चाहिए। धन्य हैं, हमारे गुरूवर जो स्वयं कषायों को दिन-प्रतिदिन कृष् करते जा रहे हैं एवं हम सभी साधकों को भी यही उपदेश दे रहे हैं।

    Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...