यह संसारी प्राणी अनादिकाल से पंचेन्द्रिय के विषयों में लीन रहा है। इन विषयों का आकर्षण आसानी से नहीं छूटता है। जब तक पंचेन्द्रिय विषयों की वास्तविकता ज्ञात नहीं होती, वस्तु-स्वरूप द्रष्टि में नहीं आता तब तक यह विषय छूट भी नहीं सकते। समयसार ग्रंथ की वाचना के समय आचार्य श्री ने कहा कि सम्यग्दृष्टि ही विषयों के आकर्षण से छूट सकता है। जिसे आत्मा के गुणों से आकर्षण हो जाता है, उसकी दृष्टि विषयों से हट जाती है। सम्यग्दृष्टि विषयों से राग नहीं रखता, क्योंकि उनमें आत्मा के कोई गुण नहीं है और उनसे आत्मा के गुणों में वृद्धि भी नहीं होती।
तब किसी ने शंका व्यक्त करते हुए कहा कि- आचार्य श्री जी विषयों को छोड़ देने के बाद भी क्या पुनः विषयों की और दृष्टि नहीं फिसलती? तब आचार्य श्री जी ने शंका का समाधान देते हुए कहा कि- सम्यग्दृष्टि विषयों से छूटने के बाद पुनः फिसलता नहीं है, यही रुचि का विषय है। जैसे एक रुचि वाला अंधा व्यक्ति हारमोनियम (केसीयों) सीख लेता है फिर उसकी अंगुलियाँ फिसलती नहीं हैं, कभी भी स्वर भंग नहीं होता है।
आचार्य श्री जी ने कहा कि- श्रावक लोग आहार के बाद आकर कहते हैं महाराज श्री आपने थाली में से सबकुछ हटवा दिया था कुछ नहीं बचा। तब आचार्य श्री जी कहते है- भैया! यह तो बताओ संसार में रस है ही कहाँ ? संसार तो नीरस है फिर हटाने वाली बात ही नहीं होती। मोक्षमार्ग में समयसार का एवं आत्मा का रस खूब लो इसमें रात-दिन का कोई परहेज नहीं। धन्य हैं आचार्य महाराज जो पंचेन्द्रिय विषयों के त्यागी हैं एवं हम सभी को पंचेन्द्रिय विषयों से बचने का उपदेश देते रहते हैं। स्वयं नमक, मीठा, हरी सब्जी, फल ग्रहण नहीं करते। नीरस आहार लेते हैं, लेकिन सभी को धर्म का अमृत पिलाते रहते हैं।