दिगम्बर एवं श्वेताम्बर आम्नाय की चर्चा चल रही थी। इसके बारे में आचार्य श्री जी विस्तार से समझा रहे थे कि भगवान् महावीर के निर्दोष मार्ग में भी दो धाराओं का जन्म हो गया। इस बात को सुनकर किसी सज्जन ने शंका व्यक्त करते हुए कहा कि- आचार्य श्री जी दिगम्बर एवं श्वेताम्बर आम्नाय में से मूलधारा कौन-सी है। इस बात को सुनकर आचार्य श्री कुछ क्षण मौन रहे, ऐसा लगा जैसे चिंतन में खो गये हों। फिर नदी का उदाहरण देते हुए बोले कि-
जब नदी की धारा अबाध रूप से बह रही हो और बीच में यदि बड़ा पत्थर (पहाड़) आ जाए तो दो धारायें बन जाती हैं। ठीक उसी प्रकार महावीर भगवान की मूल दिगम्बर धारा अबाध रूप से चल रही थी बीच में 12 साल का अकाल पड़ने रूप (पत्थर) बीच में आ गया तो एक धारा श्वेताम्बर और बन गयी अब आप स्वयं तय कर लो मूल धारा कौन है ? संख्या की अपेक्षा नहीं चर्या की अपेक्षा भी पहचान कर सकते हैं। सूक्ष्मता से व्रतों का पालन जिस धारा में हो वही मूलधारा है।
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