प्रत्येक जैनी के कुलाचार में रात्रिभोजन त्याग, पानी छानकर पीना, एवं देव-दर्शन करना अर्थात् प्रतिदिन मंदिर जाना ये तीन नियम बताये हैं। जो इन तीन नियम का पालन करता है वही सच्चा जैनी माना जाता है। जैन कुल में जन्म लेना पुण्य का उदय है। लेकिन जैन बनना पुण्य की क्रिया है। एक बात हमेशा याद रखना पुण्य के उदय में पुण्य की क्रिया को कभी नहीं छोड़ना वरना पाप बंध से नहीं बच सकोगे। कई लोगों की धारणा होती है कि हमारी आत्मा तो पवित्र है हमें मंदिर जाने की क्या आवश्यकता? इसी प्रकार की धारणा वाले एक व्यक्ति ने आचार्य श्री जी से शंका व्यक्त करते हुए कहा कि- हे गुरुवर ! मंदिर जाने से क्या प्राप्त होता है? तब आचार्य श्री जी ने कहा कि- मंदिर जाने से अपने स्वरूप का ज्ञान हो जाता है। मंदिर जी में कोई जाता है और वह कहता है भगवान के सामने कि आप कौन हैं? तब प्रतिध्वनि आती है, आप कौन है? वह कहता है आप तो भगवान हैं। तब प्रतिध्वनि आती है आप तो भगवान् हैं अर्थात् मंदिर जी में जाने से हम अपने स्वरूप का बोध प्राप्त कर लेते हैं।
हमें अपने स्वरूप का ज्ञान हो जाए इससे बड़ी और क्या महिमा हो सकती है। मंदिर जी की सबसे बड़ी महिमा तो यही है कि देव-दर्शन से निज दर्शन की ओर बढ़ जाते हैं।