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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ममत्व भाव

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    परिग्रह परिमाण व्रत का व्याख्यान करते हुए आचार्य श्री जी ने कहा कि- यह पदार्थ मेरा है ऐसा भाव आना ही परिग्रह है। बाहरी पदार्थ में मनोज्ञ- अमनोज्ञ की कल्पना करके उसमें हर्ष-विषाद न करने का नाम अपरिग्रह महाव्रत है। पुद्गल ने जीव पर आज तक अधिकार नहीं जमाया लेकिन इस जीव ने पुद्गल एवं जीव दोनों पर अधिकार जमा लिया है। यह अधिकार और ममत्व ही परिग्रह कहलाता है।

     

    परिग्रह ममत्व का उदाहरण देते हुए आचार्य श्री जी ने एक संस्मरण सुनाया कि एक व्यक्ति ने मरण के कुछ समय पूर्व जिस हाथ की अंगुलियों में अंगूठी पहने था उस हाथ की मुट्ठी बांध ली। मरण के उपरान्त भी वह मुट्ठी बंधी रही एवं अंगुलियाँ अकड़ गई। परिवार जनों को अंगूठियाँ निकालना कठिन हो गया तब उन्होंने अंगुलियों को काटकर अंगूठियाँ निकाल ली। इसे कहते हैं पर वस्तु में ममत्व का भाव। इसमें मरने वाले एवं उसके परिजन दोनों को पर वस्तु से ममत्व था।


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