किसी ने आचार्य श्री जी से कहा कि- मेरा मन बड़ा चंचल है। सामायिक आदि धार्मिक क्रियाओं में विचलित हो जाता है। इससे काम लेने का तरीका बतलाइए। तब आचार्य श्री जी ने शंका का समाधान करते हुए कहा कि- मन को सुला दो फिर आत्मा अपना काम कर लेगी। आचार्य श्री जी ने उदाहरण देते हुए कहा कि- जैसे घर में बच्चा रोता, मचलता एवं ऊधम करता है तो माँ उसे पालने में सुला देती है और अपना काम कर लेती है। यदि बीच में बच्चा जाग जाता है तो माँ पुनः पालना झुला देती है तो बच्चा फिर सो जाता। है। ठीक उसी प्रकार मन रूपी बच्चे को सुलाकर के आत्मा रूपी माँ को अपना काम कर लेना चाहिए। आज तक आप सोते रहे और मन जागता रहा। कभी-कभी बच्चा बनकर सो जाता है माँ बाहर जाने लगती है तो रोने लगता है और कहता है मैं भी चलूंगा, मैं भी चलूंगा। ऐसा ही मन है, लगता है वश में हो गया पर बड़ा नटखटी है। मन को सुलाने वाला एवन होगा। मुझे एकाध व्यक्ति बता दो। जिसका मन सो गया। जिसकी संकल्पशक्ति दृढ़ होती है, वही मन को सुला पाता है। मन को विश्राम देना साधक का मुख्य कार्य होताहै।
यह सुनकर किसी ने कहा कि- मन तो मुड़ा हुआ है? तब आचार्य श्री जी ने शंका का समाधान करते हुए कहा कि- मन मुड़ा। हुआ है तो, घर की चिंता में पसीना नहीं आना चाहिए। छोटा बच्चा है तो सुलाओ, बड़ा हो गया तो काम कराओ। आत्मा सही कार्य तभी कर पाती जब मन, वचन एवं काय सो जाते हैं। संसार में विकल्प होता है तो कर्तृत्व, भोगक्तृत्व, स्वामित्व से होता है। मन को इन तीनों से खाली कर दो। ज्ञानी के मन में ये तीनों होते है लेकिन स्व को लेकर होते हैं स्व का ही करता (कर्ता), भोक्ता, स्वामी हूँ। पांचों इन्द्रियाँ सयानी हैं, यह अच्छा है, बुरा है इस प्रकार की उनसे कभी शिकायत नहीं आती। मन कहता है यह सब ठीक नहीं है, वह ठीक नहीं है। संसार में जो कुछ बसता है मन की कारण ही बसता है।
मन चारों और देखता रहता है, सोचता रहता है (NEWS) चारों दिशाओं में। अब अपने मन के लिए अपने को ही समझाना है मन आज तक हमें हीं समझाता आया है। ध्यान रखो आत्मा जो अनुभव में आती है वह NEWS का विषय नहीं बन सकता।