सल्लेखना का प्रकरण चल ही रहा था कि किसी ने आचार्य श्री जी से शंका व्यक्त करते हुए कहा कि- कषाय सल्लेखना देखने में तो आती है लेकिन कषाय सल्लेखना को कैसे समझे? तब आचार्य श्री ने कहा कि- कषाय सल्लेखना तो अंतरंग के परिणामों से होती है इसे तो करने वाला ही समझ सकता है।
पुनः शंका व्यक्त करते हुए कहा कि यदि कोई कषाय न करते हुए मात्र काय सल्लेखना कर ले तो क्या परिणाम होगा? इस शंका का समाधान करते हुए आचार्य श्री जी ने कहा कि- जैसे एक सर्प ने कांचुरी का तो त्याग कर दिया लेकिन जहर का त्याग नहीं किया तो परिणाम यह निकलेगा कि वह निर्विघ्न नहीं हो पाएगा।