सबसे बड़ी साधना है। आज वर्तमान में साधु अपने 28 मूलगुणों का निर्दोष पालन कर ले बस कल्याण हो जाएगा। आज वर्तमान में निर्दोष चर्या का पालन करने वाले साधु विरले ही मिलते हैं। कहीं न कहीं कुछ न कुछ कमी देखने में मिल ही जाया करती है। इसी बात को लेकर एक दिन आचार्य श्री ने कहा कि- पंचमकाल में धूप में, पहाड़ पर बैठकर एवं सर्दी में जंगल में रहकर साधना नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं, लेकिन मंदिर एवं धर्मशाला में रहकर कषाय तो मत करो यही तब किसी श्रावक ने कहा कि- आचार्य श्री जी आप जैसे विरले साधु ही हैं जो शिथिलाचार को समाप्त कर सकते हैं। तब आचार्य श्री ने कहा कि- कुमार्ग (शिथिलाचार) में लोगों की संख्या सम्मूर्छन जन्म जैसी बड़ती है और सन्मार्ग में गर्भज जन्म की तरह। क्या करें सच्चा साधु कौवों के बीच में एक हंस के जैसा है। उस एक हंस की कोई मानने वाला नहीं है, क्योंकि कौवों का बहुमत है और बहुमत का जमाना है।