व्रती अपने व्रतों को सुरक्षित रखने के लिए तीन गुप्ति रूपी घर में ही रह जाते हैं। जैसे कि होली से बचने के लिए अपने घर में भी सुरक्षित रहता है। इसी बात को समझाते हुए आचार्य श्री जी ने कहा कि- मुनि महाराज जहाँ कहीं भी रहते हैं लेकिन कर्मास्रव की होली से अवश्य बचते हैं। जैसे आप होली के समय होली से बचते हैं, लेकिन होली से बचने के लिए जिस व्यक्ति की अंदर से स्थिरता नहीं रहती वह बार-बार सोचता है कि- थोड़ा-सा खिड़की से तो देख लूँ और देखते-देखते बाहर खड़ा व्यक्ति रंग की पिचकारी छोड़ देता है तो वह भी नियम से रंग जाता है, लेकिन जो पूर्ण रूप से स्थिर चित्त हो जाता है तो वह रंग से बच जाता है। उसी प्रकार यदि उपयोग में स्थिरता नहीं होती तो आत्मा कर्म रूपी रंग से बच नहीं सकती। इसीलिए मुनिराज ऐसे स्टोररूम में बैठ जाते हैं स्थिर चित्त होकर कि कर्म बंध नहीं होता। कर्म का उदय मात्र बंध के लिए कारण नहीं होता जैसे कि- होली का समय मात्र आने से रंग से रंग नहीं जाते। इस रहस्य को जब तक समझ में नहीं आता तब तक इस संसार से पार नहीं हो सकता।
इस संस्मरण से व्रतियों को शिक्षा मिल ही जाती है लेकिन श्रावकों को भी यह शिक्षा ले लेनी चाहिए कि- एक बूंद अनछने पानी में विज्ञान के अनुसार 36,450 जीव होते हैं तो जीव रक्षा के लिए एवं पानी की बचत के लिए एवं शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए कभी भी होली नहीं खेलनी चाहिए।