अपना, अपना ही होता है और पराया, पराया ही होता है। अपना सबको अच्छा लगता है और पराया कितना भी अच्छा क्यों न हो पर अपने से अच्छा नहीं लगता। अपने के प्रति सभी को लगाव होता है और अपना निर्दोष जैसा लगता है। किसी साधक ने आचार्य श्री से प्रश्न किया, आचार्य श्री ने उसका उत्तर भी दिया लेकिन उन्हें अपना प्रश्न अच्छा लगा, किन्तु आचार्य श्री ने जो उत्तर दिया ऐसा लगा मानो उन साधक को उस उत्तर से संतुष्टि न मिली हो। वह पुनः प्रश्न करने लगे तब आचार्य श्री जी ने कहा कि आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज कहा करते थे कि - "प्रश्न उत्तर से अच्छा होता है, क्योंकि प्रश्न अपना होता है। और अपना सबसे अच्छा होता है।" उत्तर की प्रतीक्षा करो एक दिन ऐसा उत्तर मिलेगा कि फिर कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होगा। सभी लोग इस बात को सुनकर बहुत खुश हुए।