रक्षाबंधन पर्व, वात्सल्य दिवस भारतीय संस्कृति में महान धार्मिक पर्व माना जाता है। इस दिन धर्म तीर्थ एवं धर्मात्माओं की रक्षा का संकल्प लिया जाता है। साधर्मी भाई-बहनें इस दिन इक-दूजे की कलाई में रक्षा सूत्र (राखी) बांधा करते हैं। इस दिन वात्सल्य भाव से मीठा आदि खिलाकर एक-दूसरे का मुँह मीठा करवाते हैं। भाई, बहनों को उपहार स्वरूप कुछ वस्त्र या बेशकीमती वस्तुएँ प्रदान करते हैं।
ब्र. विद्याधर जी बचपन में अपनी बहनों के लिए सावन के त्यौहार पर वस्त्र, खिलौने न देकर सचित्र ग्रंथ लाकर देते थे ताकि वे भी धर्म का ज्ञान कर सकें। यह गुरुदेव की देव-शास्त्र-गुरु के प्रति बचपन से ही दृढ़ आस्था थी एवं स्वाध्याय के प्रति रुझान देखते ही बनता था। शास्त्र देते समय जैसे वे संदेश दे रहे हों कि धर्म, संस्कृति की रक्षा करना चाहते हो तो शास्त्रों का स्वाध्याय करो और शास्त्र के अनुरूप अपने जीवन को ढालने का प्रयास करो। सच्चे भाई-बंधु तो वही हैं जो हमें मोक्षमार्ग पर लगा दें, कल्याण का रास्ता प्रशस्त कर दें। वे भाई-बंधु हितैषी नहीं हो सकते जो हमें संसार के गर्त में ढकेल दें।
गुरुदेव के बचपन के इस प्रसंग से सभी पाठक गणों को भी यही शिक्षा ले लेनी चाहिए कि इस महान पर्व रक्षाबंधन पर हम भी अपने साधर्मी भाई-बहनों को ऐसा ही कुछ उपहार दें, ताकि उनका भी कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो सके उस मार्ग पर बढ़ सकें।