भोपाल में पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव सानंद नहीं बल्कि निर्विघ्न सानंद सम्पन्न हो गया। क्योंकि जिस कार्य में गुरु का आशीर्वाद हो और उन्हीं का साक्षात् सान्निध्य प्राप्त हो उस कार्य की सफलता में संदेह करना व्यर्थ ही है। वहाँ संदेह को स्थान ही नहीं मिल सकता। पंचकल्याणक के उपरान्त सागर की ओर विहार हो गया रास्ते में ही सामाजिक बातें चल रही थीं। समाज की दशा आज बड़ी चिन्तनीय होती चली जा रही है। कुछ लोग समाज में पूर्ण समर्पित होकर कार्य करते हैं लेकिन वे आगे नहीं आ पाते। क्योंकि, बहुमत का अभाव होता है। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि वे मन से आगे नहीं हैं क्योंकि नि:स्वार्थ भावना ही उनका महत्व बढ़ा देती है दुनियांन भी समझे तो भी उस भावना का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो सामने ही नहीं आते बल्कि अपना कार्य तन-मन-धन से समर्पित होकर करते रहते हैं। और कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मात्र मंच-माला-माईक के समय ही दिखते हैं। कुछ कार्य आते ही पीछे हट जाते हैं सहयोग के नाम पर शून्यता दर्शाते हैं। उन्हें तो मात्र स्वार्थ के तवे पर अपनी रोटियाँ सेंकना ही आता है। समाज का कुछ भी अच्छा-बुरा होता रहे इससे उन्हें क्या लेना-देना।
यह सुनकर आचार्य महाराज ने हँसकर कहा कि-ऐसे मंच-माला-माईक वाले लोगों को पहचानना जरूरी है वरना वे अपने ही गले में माला डाल दें तो क्या ........? आचार्य महाराज का अभिप्राय सभी लोग समझ गए और हँसने लगे। गुरुदेव उज्ज्वल विनोद के धनी हैं ही उनकी विनोदपूर्ण शैली में दी गई शिक्षा उज्ज्वल भविष्य की ओर संकेत देती है।