सादा जीवन उच्च विचार (Simple living high thinking) ही जीवन जीने की सही कला है। जिसके जीवन में सादगी नहीं है वह बड़ा ज्ञानी-विज्ञानी भी हो तो भी सम्मान का पात्र नहीं बन पाता। क्योंकि वही उपदेश प्रभावी होता है-जो वाणी से नहीं आचरण से अभिव्यक्त होता है। इसीलिए वाणी से वक्ता की पहचान नहीं होती बल्कि, वक्ता की प्रमाणिकता से वाणी की प्रमाणिकता होती है। आचार्यश्री जी कहते हैं-जो आप दूसरों को उपदेश देना चाहते हो वह अपने आपके जीवन में पहले उतार लो। फिर जो आपका जीवन बोलेगा वही औरों को प्रभावित करेगा, वही उपदेश सार्थक होगा। जिसका जीवन सादगीपूर्ण होता है वह हर जगह सम्मान पाता है एवं उसके विचारों में अपने आप उत्कृष्टता आती जाती है। जब वह अपने विचार औरों के सामने रखता है तो सभी उन विचारों पर अमल करते हैं और उसका सम्मान भी करते हैं। लेकिन जो व्यक्ति सात्विक जीवन नहीं जीता और मात्र उपदेश देकर सम्मान की चाह रखता है वह मंच, माला और माईक तक ही सीमित रह जाता है। जीवन में कभी भी अपना उत्थान नहीं कर पाता एवं आत्म गौरव कायम नहीं रख पाता।
आचार्य गुरुदेव ने एक दिन धर्म प्रभावना की चर्चा करते हुए कहा - यदि आज त्यागी व्रती सादगी से समाज में रहते हैं तो समाज पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। एक द्वितीय प्रतिमा वाला व्रती श्रावक भी समाज में धर्म का डंका बजा सकता है। धर्म की प्रभावना कर सकता है यदि वह मंच, माला, माईक और पैसों से बचा रहता है तो इसलिए आज के साधको को चाहिए कि वे संपदा, सत्ता और संस्था के मोहजाल से बचें एवं सादगी से जीवन यापन करें।
आज सबसे ज्यादा इस बात की कमी आती जा रही है कि - व्यक्ति अपने उद्देश्य को भूलता जा रहा है एवं मात्र जीवन निर्वाह की बात सोचता है, जीवन निर्माण की बात नहीं सोचता और न ही उस दिशा में कदम ही बढ़ाता है।
(29.03.2003)