आज वर्तमान में प्राय: अधिकांश नगरों में पानी की जटिल समस्या बनी हुई है। कहीं-कहीं तो पानी 1-2 कि.मी. दूर से लाना पड़ता है। कुएँ सभी सूखते चले जा रहे हैं, कुछ कुएँ तो पूर (बंद कर) दिये गये हैं। नल की व्यवस्था आ गयी है जिसके कारण पानी के स्रोत सूखते जा रहे हैं।
एक दिन आचार्य श्री ने बताया कि पानी का स्तर क्यों नीचे गिरता जा रहा है। क्योंकि, मानी व्यक्ति पानी-पानी नहीं हो पा रहा है इसलिए पानी का स्तर नीचे जा रहा है और पानी की समस्या बन गई। दूसरे के दुःख को देखकर आज व्यक्ति की आँखों से आँसू नहीं आते। दया, करुणा, सौहार्दपूर्ण व्यवहार के अभाव में प्रकृति पर गलत प्रभाव पड़ रहा उन्होंने बताया-एक व्यक्ति के यहाँ कुआँ था, उसमें पानी भी बहुत था। लेकिन, वह व्यक्ति हृदय शून्य था, दया से हृदय भीगा नहीं था। लोग उसके कुएँ से पानी भरने जाते । एक बार उसने कह दिया मेरे कुएँ से आप लोग पानी नहीं भर सकते। दूसरे ही वर्ष में उसके कुएँ का पानी गायब हो गया, कुआँ सूख गया और दूसरे कुओं में पानी लबालब भर गया।
ध्यान रखना- भाव, दुर्भाव होने से स्वभाव की गति भी नीचे की ओर हो जाती है। भूकंप के पीछे कारण क्या है ? शोधकर्ताओं ने बताया कि-हजारों पशुओं का वध और वनों की कटाई से प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया इसलिए भूकंप आ रहे हैं। वेदना का अतिरेक होने पर प्रलय होने में देर नहीं लगती। कषाय, वेदना, समुद्घात में शक्ति एकत्रित की जाती है, जैसे बादलों के संघर्ष से वर्षा होने लगती है। आप लोगों का कलेजा नहीं काँप रहा है इसलिए धरती कांप रही है। दूसरे के दुख को देखकर जिसका हृदय कंपित हो उठे उसे सम्यग्दृष्टि कहते हैं। प्रकृति के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार है पानी का अपव्यय न करना। पानी खर्च करिये लेकिन उसके अपव्यय से बचिये।
आचार्य भगवन् सचेत कर रहे हैं कि-धरती पर रहने वाला प्राणी अपनी प्रकृति (स्वभाव) बदलता जा रहा है। करुणा, दया जैसे भाव आज समाप्त होते जा रहे हैं सद्भाव, दुर्भाव में बदलते जा रहे हैं इसलिए अकाल, भूकंप जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। यदि व्यक्ति अपनी प्रकृति को बदल दे, पुनः सौहार्दपूर्ण व्यवहार करने लगे तो प्रकृति उसका साथ देने लगेगी। आज हमारे देश में संस्कारों का स्तर नीचे गिरता चला जा रहा है इसलिए प्रकृति का, पानी का स्तर भी नीचे गिरता जा रहा है। हमें संभलना होगा और दया, करुणा, सौहार्दपूर्ण व्यवहार को पुनः जीवित करना होगा इसी से अपना, देश तथा समाज का कल्याण होगा।
(अतिशय क्षेत्र बीना बारहा जी, 16.10.2005)