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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • प्रभू चरणों में

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    सुबह-सुबह की बात है। उन्हें ऊपर पर्वत की ओर जाते हुए देखा, मैं भी उनके पीछे-पीछे हो लिया। शौच क्रिया से निवृत्त होकर प्रतिदिन की भांति आज भी वे बड़े बाबा की चरण वन्दना करने लगे। उनके पास में ही मैं भी खड़ा होकर वन्दना करने लगा। ऐसा लग रहा था मानो आज दो ईश्वरों का मिलन देख रहा हूँ लेकिन उस ईश्वर के प्रति अदभुत भक्ति देखकर मन ही मन प्रफुल्लित हो उठा। थोड़ी देर बाद देखा, गुरुदेव बड़े बाबा के चरणों की वंदना कर वहीं बैठ गये। हम लोगों को लगा शायद गरुदेव अभी नीचे ज्ञान-साधना केन्द्र में जाकर बैठेगे, लेकिन आज वहीं बड़े बाबा के चरणों में बैठ गये और हाथ जोड़कर बड़े ही विनम्र भाव से बोले -

     

    प्रभु पदों में

    पहले बैठ तो लूँ

    फिर बनूंगा।

     

    अपनी लघुता प्रदर्शित करते हुए ऐसा लग रहा था जैसे वे उपदेश दे रहे हों कि भक्त बने बिना भगवान नहीं बना जा सकता। यदि भगवान बनना है तो भगवान के चरणों में आकर बैठो, उनकी भक्ति आराधना करो यही प्रथम रास्ता है - 'प्रभु' बनने का। बात देखने में छोटी-सी लगती है लेकिन यदि गुरुदेव की बात को गहराई से सोचा जाये तो मालूम पड़ता है इसमें कितना रहस्य भरा हुआ है। आखिर हैं तो बड़े महाराज की बात, उसमें बहुत बड़ा राज तो छुपा ही होगा। आज कुछ लोग भक्त नहीं भगवान बनेंगे, ऐसी धारणा बनाकर बैठे हैं। लेकिन, ध्यान रखना भक्त बने बिना आज तक कोई भगवान नहीं बना, और न ही बन सकता है।

     

    भक्त लीन जब ईश में, यूँ कहते ऋषि लोग।

    मणि-कांचन का योग ना, मणि-प्रवाल का योग।।

    (कुण्डलपुर)


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