जिस व्यक्ति का शरीर दुर्बल है लेकिन मन मजबूत है वह मोक्षमार्ग पर बढ़ सकता है लेकिन, जिसका मन दुर्बल हो और तन तगड़ा भी हो तो वह मोक्षमार्ग पर नहीं बढ़ सकता। क्योंकि, किसी ने कहा भी है - मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
"मन एव मनुष्याणांकारणंबन्ध मोक्षयोः" अर्थात् मनुष्य का मन ही संसार के बंधन का एवं मन ही मोक्ष का कारण है। आचार्य श्री जी ने मोक्षमार्ग की चर्चा करते हुए कहा कि - मानसिकता ही है जो मोक्षमार्ग में प्रधान है। यूँ कहो कि मानसिकता ही मोक्षमार्ग में प्राण है। तब पास में ही बैठे पंडित जी ने कहा - आचार्य श्री जी! यदि मन चाहता हो मोक्षमार्ग पर बढ़े लेकिन शरीर साथ नहीं देता हो तो क्या करें? चुपचाप आचार्यश्री ने इस बात को सुना और मुस्कुरा कर बोले सुनो पंडित जी, आत्मा के पास अनंत शक्ति है। वह अनंत शक्ति कब काम में आवेगी, उसका विश्वास के साथ उद्घाटन करो। शरीर तो आराम चाहता है उसे ज्यादा आराम मत दो। थोड़ा उसे पड़ोसी बनाकर तो देखो तब आत्मा का आनंद प्राप्त कर सकोगे। जो पर है, उसे पड़ोसी कहा जाता है। परः + असि = परोऽसि। इसलिए शरीर पर द्रव्य है उसे पड़ोसी समझोगे तभी आत्म घर की रक्षा कर सकते हो वरना उसी की रक्षा में जीवन गुजर जावेगा, हाथ कुछ भी नहीं लगेगा।
सच है गुरुदेव हमेशा आत्मा में जागृति रखते हैं एवं औरों को भी आत्मजागृति की प्रेरणा देते हैं। हमें भी गुरुदेव के इस प्रेरक प्रसंग से शिक्षा लेना चाहिए कि हम भी कुछ क्षणों के लिए शरीर को पड़ोसी बनाकर आत्म ध्यान करें। संयम का पालन करें। शरीर से ममत्व भाव त्यागें।