निष्काम भक्ति अपने आप में महत्वपूर्ण मानी जाती है। आज प्राय: देखा जाता है कि-व्यक्ति कुछ न कुछ कामना, इच्छा रखकर भक्ति करता है। बहुत कम लोग हैं जो मात्र अपना कर्त्तव्य समझ कर प्रभु की भक्ति पूजन करते हैं। प्रभु से कुछ मांगना एक अविवेक ही है जैसे वृक्ष के सामने खड़े होकर छाया मांगना। प्रभु की भक्ति से सब कुछ प्राप्त हो जाता है। भगवान कुछ नहीं देते बल्कि, हमारी भक्ति के भावों के माध्यम से हमें प्राप्त हो जाता है। कहा भी है
जो मन से पूजा करता है, पूजा उनको फल देती है।
प्रभु पूजा भक्त पुजारी के सारे संकट हर लेती है।
एक बार एक सज्जन ने आचार्य गुरुदेव से पूँछा - आचार्य गुरुदेव सभी लोग प्रभु के सामने कुछ ना कुछ याचना करते हैं आखिर यह सब करना चाहिए या नहीं। यदि प्रभु से कुछ मांगना है तो क्या मांगें ? आचार्य गुरुदेव ने कहा - भगवान के सामने ऐसी मांग करें ताकि दुबारा मांगना न पड़े “वन्दे तदगुण लब्धये"। हे प्रभु! आपको नमस्कार कर रहा हूँ मात्र आपके गुणों की प्राप्ति के लिये। प्रभु के पास रत्नत्रय रूप ऐसी निधियाँ हैं कि अनादि काल की निर्धनता समाप्त हो जाती है। और, आत्म वैभव उपलब्ध हो जाता है।
ठीक इसी प्रकार बन्धुओं हमें भी वीतरागी प्रभु के चरणों में भिखारी नहीं भक्त बनकर जाना चाहिए। क्योंकि, प्रभु की भक्ति से जब मोक्ष सुख मिल सकता है तो संसार का सुख क्यों न मिलेगा? उसकी कामना प्रभु के सामने नहीं करना चाहिए मात्र आस्था के साथ भक्ति करते जाना चाहिए। भगवान के भक्त के पास संसार की सारी सम्पत्तियाँ वैसे ही सिमट कर चली आती हैं जैसे बिना बुलाये सागर के पास नदी-नाले चले आते हैं।
(अतिशय क्षेत्र बीना बारहा जी, 3 अक्टूबर 2005, सोमवार)