प्रथमानुयोग में कृष्ण जी के बारे में एक प्रसंग आता है कि- देवों ने उनकी गुण ग्राही दृष्टि की प्रशंसा सुनकर परीक्षा लेने के लिए एक श्वान का रूप बनाया और रास्ते में मृतप्राय होकर लेट गया, जिसमें से ऐसी दुर्गंध आ रही थी कि उसके आस-पास के परिसर में दूर-दूर तक लोग नहीं दिख रहे थे। श्रीकृष्णजी ने देखा तब उसी समय साथी ने कहा - कैसी दुर्गंध आ रही है, चलो यहाँ से। तब श्रीकृष्ण, जो कि गुणग्राही तो थे ही उन्होंने दुर्गध रूपी दोष को गौण करते हुये कहा - देखो, इस कुत्ते के दाँत कितने श्वेत हैं, कितने अच्छे चमक रहे हैं। यह सुनकर देवता श्रीकृष्ण के चरणों को नमस्कार कर कहने लगे धन्य है !
आपकी गुणग्रहण की दृष्टि। ठीक वैसी ही गुण ग्रहण की दृष्टि पूज्य गुरुदेव में देखने को मिलती है। बीना बारहा जी चातुर्मास (2005) में आत्मानुशासन ग्रंथ की कक्षा चल रही थी उस समय एक कुत्ता मंच पर पहुँच गया और गुरुदेव जिस तखत पर विराजमान थे उसके नीचे जाकर बैठ गया तब सभी श्रावकगण इस दृश्य को देखकर हँसने लगे। आचार्यश्री जी ने कहा - उसे देखकर क्यों हँस रहे हो, छी-छी क्यों कर रहे हो ? उसे कोषकारों ने कृतज्ञ की उपमा दी है। कुत्ता थोड़ा भोजन करता है, थोड़ी नींद लेता है लेकिन मालिक के प्रति बड़ा बफादार होता है। उसके रहते घर में कोई चोर घुस नहीं सकता। वह मालिक के मारने-डांटने के बाद भी उनके सामने पूँछ हिलाता रहता है, बड़ी ही कृतज्ञता ज्ञापित करता है, इसलिए कोषकारों ने अन्य किसी मनुष्य या पशु को कृतज्ञ की उपमा नहीं दी मात्र कुत्ते को ही कृतज्ञ कहा है।
गुरुदेव के इस प्रसंग से हम सभी को भी यही शिक्षा लेना चाहिए कि हम भी व्यक्ति में, प्रकृति में दोष न देखकर गुणों को ही खोजा करें। और, उन गुणों को ग्रहण करें तभी हमारा जीवन महान बन सकता है। संसार में ऐसा कोई मकान नहीं है जिसमें एक न एक खिड़की या दरवाजा न हो ठीक वैसे ही संसार में ऐसा कोई व्यक्ति और पदार्थ नहीं है जिसमें एक न एक गुण न हो। बस शर्त इतनी सी है कि उसे पहचानने की दृष्टि, देखने की दृष्टि हमारे पास होनी चाहिए।
ये किसने कहा कि
भले में बुराई नहीं होती..
और
बुरे में भलाई नहीं होती......
देखो तो
चमकती हुई आग में
धुआँ पैदा होता है
और गंदे कीचड़ में भी
कमल खिलता है.....।