ईर्यापथ भक्ति के उपरान्त आचार्य श्री जी ने प्रसंगानुसार कहा कि- मुनि महाराज को कमरे का दरवाजा खोलना और बंद करना विधेय नहीं है, कथंचित् क्षम्य हो सकता है। सामायिक के बाद उसी दिन विहार हो गया रास्ते में जिस गाँव में रात्रि विश्राम हुआ वहाँ नये कमरे थे जिनमें दरवाजे नहीं लगे थे। इस पर आचार्य श्री जी से कहा कि- आज ही दरवाजे का प्रसंग आया था और आज ही बिना दरवाजे का मकान रात्रि विश्राम करने को मिला। यह सुनकर आचार्य श्री जी हँसने लगे और बोले कि मैंने दरवाजे बंद और खोलने को मना किया है लेकिन, आँखों के दरवाजे खोलने-बंद करने मना नहीं किया। वे (पलकें) अच्छे ढंग से खोलिये और बंद कीजिए। सभी लोग इस श्लेष पूर्ण शिक्षाप्रद बात को सुनकर प्रसन्न हुये। विनोद ही विनोद में आचार्य श्री जी शिक्षा देते रहते हैं। आचार्य श्री जी उज्ज्वल विनोद के धनी तो हैं ही, साथ में इससे हम लोगों को भी ऐसा धन प्राप्त हो जाता है कि जो जीवन में हरदम काम आता है।