प्रवचन के पूर्व किसी सज्जन ने दान के बारे में अपनी बात रखी। हँसी के तौर पर उन्होंने कहा - बुन्देलखण्ड के लोग बड़े कंजूस हैं ये दान नहीं देते। यह सुनकर आचार्य गुरुदेव मन ही मन मुस्कुराने लगे और मंद-मंद मुस्कान उनके चेहरे पर आ गयी तो सभी सभा में बैठे श्रद्धालु गण हँसने लगे।
आचार्य महाराज ने प्रवचन के समय कहा - अभी एक सज्जन कह रहे थे कि ये बुन्देलखण्ड के लोग धन का त्याग नहीं करते। देखो (मंचासीन सभी मुनिराजों की ओर अंगुली का इशारा करते हुए कहा) बुन्देलखण्ड वालों ने हमें चेतन धन दिया है। ये इतनी बड़ी दुकान है। आप कह रहे थे कि ये दान नहीं करते। उन्मुक्त हँसी के साथ बोले- ये बुन्देलखण्ड के श्रावक जड़ का नहीं चेतन धन का दान करते हैं। हमारी यहाँ अच्छी दुकान चलती है इसलिए तो बुन्देलखण्ड छोड़ा नहीं जाता है। खूब भगवान की प्रभावना होती है। फिर थोड़ा रुककर बोले कि-भगवान की क्या प्रभावना ? होनहार भगवान को तैयार करना ही भगवान की प्रभावना है।
आचार्य गुरुदेव जड़ को महत्व नहीं देते है। 'चेतन' को धन की संज्ञा देते हैं। आत्म वैभव ही सच्चा वैभव है और जिन्हें वह प्राप्त है उन्हें अन्य किसी वैभव की जरूरत नहीं। आत्म वैभव के प्राप्त होते ही दुनियाँ के वैभव फीके लगने लगते हैं।
(अतिशय क्षेत्र बीना बारहा जी, त्याग धर्म 15.09.2005)