पहले आज के युग के समान भौतिक साधनों का अभाव था, यातायात के साधन एवं सड़कें भी सही ढंग से उपलब्ध नहीं थीं। आज विज्ञान की देन है जो इतने सब भौतिक साधन उपलब्ध हो गये। जैसे - मोबाइल, घड़ियाँ, कम्प्यूटर आदि। लेकिन, इन भौतिक सुविधाओं का उपयोग सावधानी पूर्वक न किया गया तो ये दुविधा ही उत्पन्न करेंगी। सुख का नहीं दुःख का ही हेतु सिद्ध होंगी और वर्तमान में यह देखने को भी मिल रहा है।
एक दिन शाम को वैयावृत्ति के समय गुरुदेव के चरणों में बैठकर आधुनिक युग के भौतिक साधनों की चर्चा कर रहे थे। मैंने कहा-गुरुदेव ! आज ऐसे-ऐसे यंत्र आ गये हैं कि घर बैठे ही सब कुछ देख, सुन सकते हैं। यंत्रों से ही देश-विदेश की सारी गतिविधियाँ जान सकते हैं। तभी एक महाराज जी ने कहा - आचार्य श्री! हमने कभी अमृतधारा नहीं देखी थी संघ में आकर ही श्रावकों के पास देखी है। दूसरे महाराज जी ने कहा - हमने मध्यम क्वालिटी का घड़ी का सेल कभी नहीं देखा था। सब अपनी-अपनी बात बता रहे थे ताकि आचार्य महाराज के बचपन की बातें सुनने को मिल सकें इतने में आचार्य गुरुदेव ने कहा - हमने भी कभी डामर की पक्की सड़क नहीं देखी थी। पिकनिक के लिए सदलगा से चिक्कोडी तालुका जा रहे थे तो बैलगाड़ियों से उतरकर उस पक्की चिकनी सड़क को हाथ से स्पर्श करके देखते थे और फिर स्तवनिधि क्षेत्र के दर्शन करने गये तो वहाँ पर बैंगलोर पूना हाइवे पर अच्छी बसें चलती थीं तो उनको बस हम लोग देखते ही रह जाते थे........ सभी लोग हँसने लगे। ये हैं गुरुदेव की बचपन की यादें।