तत्त्व दृष्टि वाले व्यक्ति संसार के प्रत्येक पदार्थ में, घटना में, तत्त्व का ही दर्शन किया करते हैं। यूँ कहो उसमें से तत्त्व को खोज लिया करते हैं। इसलिए कहा गया है - "कि सृष्टि नहीं दृष्टि बदलो, जीवन बदल जावेगा।"
विहार करते हुए नरसिंहपुर की ओर जा रहे थे, रास्ता बहुत खराब था। आचार्य गुरुदेव से कहा - ऐसे रास्ते पर समय बहुत लगता है एवं ऐसी सड़क पर पैर भी छिल जाते हैं खराब हो जाते हैं। आचार्य महाराज हँसकर कहते हैं - पैर कम दिमाग ज्यादा खराब होता है, यह खराब सड़क अपर्याप्त दशा जैसी है। जिस प्रकार अपर्याप्त दशा में मिश्रकाय योग रहता है, उसमें मिश्र वर्गणायें आती हैं, उसी प्रकार इस रास्ते पर चलने से अलग प्रकार का अनुभव हो रहा है। थोड़ा रुककर बोले - हाँ अपूर्णता का नाम ही अपर्याप्त दशा है वह यही है, जिसे पार करना है।
हे गुरु! मैं क्या करूँ
यूँ तो पृथ्वी पर
न जाने कितने
कुएँ, कितनी नदियाँ
और कितने तालाब हैं
किन्तु
हंस का मन तो
मानसरोवर का ही
ध्यान किया करता है ...।
(28.01.2002 नरसिंहपुर)