रागी, वीतरागता में भी राग ढूंढ़ लेता है और वैरागी राग में भी वैराग्य खोज लेता है। यह दृष्टि का अंतर है, सृष्टि वही है, दृष्टि बदलते ही सृष्टि बदल जाती है | अतिशय क्षेत्र बहोरीबंद की बात है। गर्मी का समय था धर्मशाला के पीछे एक बकरा अनार वृक्ष के पत्तों को खाने के लिए दोनों पैरों को ऊपर उठाकर तोड़ने का प्रयास कर रहा था। तब आचार्य श्री जी ने कहा - देखो कुंथुसागर यह बकरा। मैंने कहा - हाँ आचार्य श्री जी उसको भूख लगी है तभी तो इतना प्रयास करके पत्तियाँ तोड़ रहा है। आचार्य श्री जी ने कहा - यह आहार संज्ञा है चारों संज्ञायें बड़ी प्रबल होती हैं। आहार संज्ञा तीर्थंकरों को भी होती है। मुनि अवस्था में वे भी आहार के लिए उठते हैं। (संज्ञा = इच्छा)।