व्यापार वही है, जहाँ नफा ही नफा हो हानि की बात नहीं, वही तो सच्चा अच्छा व्यापारी है। ग्राहक दुकान पर आये और बिना कुछ क्रय किए खाली न जाये यही तो व्यापारी की कुशलता है। जो ग्राहक दुकान पर आता है माल देखकर भाव पूछकर चला जाता है वह समय को और बर्वाद कर जाता है, त्यागी ऐसे ग्राहकों से सावधान रहे उनको अपना माल न दिखायें तब कहीं त्यागी के निर्दोष व्रत पलते हैं।
और समय की बचत कर वह आत्म तत्त्व को पहचानने में समय दे पाता है। ऐसी पैनी दृष्टि रखने वाले आचार्य प्रवर श्री ज्ञानसागरजी महाराज कहते थे कि ऐसे ग्राहकों से बचना चाहिए जो दुकान पर आते हैं और मात्र माल की पूछताछ तो करते हैं किन्तु माल नहीं खरीदते ऐसे लोग ही मोक्षमार्ग के बाधक तत्त्व हैं, समय का सदुपयोग करने वाला ही सही व्यापारी है। जैसे-व्यापारी पाई-पाई का हिसाबकिताब रखता है ऐसा ही हिसाब त्यागी को रखना चाहिए।