मुख की उपयोगिता उसके बोल से होती है, बोल हमेशा जब तोल कर प्रयोग किये जाते हैं, तब वे प्रभावी शब्द वाक्य मंत्रबद्ध प्रभावी शक्तिशाली बन जाते हैं। अशब्द शब्द भाषा का असंतुलन प्रकट करने वाले होते हैं। वचन की चाल अंदर के भाव के साथ ही निकला करती है, इसे ही भाव भाषण कहते हैं। इसलिए मुनियों को मौन की मूर्ति, भाषा समिति के जानकार, हित-मित वचनों के प्रयोग धर्मी की संज्ञा प्राप्त है।
आचार्य ज्ञानसागरजी कहते थे जो प्रभु की, गुरु की, आगम की आज्ञा के अनुसार चलेगा अपनी बुद्धि के आयाम को रोककर उसके पालन में कटिबद्ध होगा, उसका ही वचन सिद्ध होगा और उसे ही वचन की सिद्धि प्राप्त होगी। आज्ञा धर्म शिष्य के उत्थान का विकास का कारण/साधन हुआ करता है। वैज्ञानिकों ने प्रयोग के आधार पर सिद्ध किया है, एक शब्द बोलने में ६-७ प्रतिशत कैलोरी खर्च होती है, इसलिए वे कहते थे जब भी वचन शुद्ध होगा तो आज्ञा पर चलने से होगा।
आचार्यश्री के श्री मुख से
८.४.२००४, शुक्रवार
मूलाचार कक्षा, कुण्डलपुर सिद्धक्षेत्र (मध्यप्रदेश)