कार्य की सफलता के लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है। क्योंकि बिना साधन के कार्य हो ही नहीं सकता, कारण से ही कार्य सधा है कारण के अभाव में कार्य की निष्पत्ति होना सम्भव नहीं है। यही साधक की साधना की सफलता की सीढ़ी है सीढ़ी के द्वारा ही लक्ष्य की प्राप्ति होती है।
वे ज्योतिष शास्त्र में जितना विश्वास नहीं रखते थे उतना स्वर ज्ञान में विश्वास रखते थे। स्वर ज्ञान साँसों की क्रिया पर आधारित ज्ञान सूर्य और चन्द्र नाम के दो स्वर हुआ करते हैं, अलग-अलग समय भिन्न-भिन्न स्वर चला करते हैं। इसे स्वर साधक जानते हैं और इन स्वरों के द्वारा अपना कार्य सिद्ध कर लेते हैं। ऐसा ही एक बार श्री ज्ञानसागरजी महाराज ने मुनि विद्यासागरजी से कहा था कि ज्योतिष भले ही फेल हो सकता है किन्तु स्वर ज्ञान कभी भी फेल नहीं हो सकता।