व्यवहार में कोई भी यात्रा हो वह यात्रा बिना सहारे के नहीं होती। व्यवहार में कोई वाहन से चलता है तो कोई पैदल चलता है, लेकिन संयमी साधु सत्य के सहारे चलता है असंयमी यदि असत्य के सहारे चलता है, तो वह लड़खड़ाके गिर जाता है।
पण्डित भूरामल की अवस्था से लेकर क्षुल्लक एवं ऐलक ज्ञानभूषण और मुनि ज्ञानसागरजी आचार्य ज्ञानसागरजी का सम्पूर्ण जीवन सत्य के आधार पर चलता था। इसी बात को अपने शिष्यों को समझाते वक्त उन्होंने कहा था कि “असत्य के बिना विसंवाद नहीं होता विसंवाद की जड़ यदि कोई है तो वह है असत्य संवाद।” असत्य से डरने वाले एवं सत्य पर चलने वाले आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज थे।