जीवन में साधना की गहराई/निरीहवृत्ति/निर्लोभता साधक को अतिशय कारी बना देती है। ऐसे साधक की चरणरज यदि माथे पर लगा लें तो मस्तिष्क के रोग ठीक हो जाते हैं। दर्शन करने से समस्या का समाधान हो जाता है। शारीरिक रोग मिट जाते हैं।
ऐसे आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज पद-विहार करते हुए राजस्थान-प्रान्त के रैनवाल ग्राम में पहुँचे। प्रतिदिन आहारचर्या को जाते समय वहाँ के श्रावक गुलाबचंद्रजी, रतनचंद्रजी गंगवाल महाराज के पीछे-पीछे चले जाते थे, उनके हाथ में कोढ़ जैसा रोग हो गया था। वे महाराजजी के पादप्रक्षालन का चरणोदक हाथ में लगा लेते थे। लगभग २० दिन ऐसा करने से उनका रोग दूर हो गया। इस प्रकार साधक की साधना रोगों को दूर करने में सहायक होती है।