बहुत पुरानी कहावत है-निषेध में ही आनंद है, जब तक परदे की बात परदे के अंदर रहती है। तो आकर्षणता को पैदा करती है। एक नहीं, दो नहीं, चार महीने बाद जब किसी बात का रहस्य खुलता है, वह आनंद के त्यौहार से भरपूर होती है। । बात चातुर्मास के प्रसंग की है-आचार्य ज्ञानसागरजी जब भी चातुर्मास की पूर्णता को प्राप्त होते थे, दिवाली निष्ठापना के दिन वे क्षमा माँग कर चार माह की पूर्णता को समाप्त कर देते थे। क्षमा उनके रग-रग में विराजमान थी, सरस्वती देवी उनके पास थी तो क्षमा देवी भी उनके पास थी, वे इन दोनों देवियों के द्वारा पूजित थे।
आचार्य श्री जी के श्री मुख से
२५.१०.२००३, शनिवार
दिवाली, अमरकण्टक (मध्यप्रदेश)