निरीक्षण के बिना, परीक्षण के बिना वस्तु की परख श्रावक के गुणों की परख नहीं हो सकती। आहार शुद्धि, क्षेत्र की शुद्धि, मन की शुद्धि, वचन की शुद्धि, काया की शुद्धि ये सब साधक के निरीक्षण के बिन्दु हुआ करते हैं।
आचार्य ज्ञानसागरजी कहते थे, मुनि महाराज जब भी चौके में आयेंगे या जायेंगे तो निरीक्षण के बिना दाता का दान स्वीकार नहीं करना चाहिए, यह क्रिया शुद्धि बुलवाने के पहले की क्रिया है। शुद्धि बुलवाने के बाद देखने और सोचने के लिए कोई गुंजाइश बाकी नहीं रह जाती है। इसलिए वे कहते थे पहले देख लो फिर शुद्धि बुलवाओ।
आचार्यश्री जी के श्री मुख से
२९.०३.२००३, शनिवार,
कुण्डलपुर सिद्धक्षेत्र (मध्यप्रदेश)