परिग्रह दुख का कारण नहीं है, उसके प्रति गहनता एवं मूर्च्छा का भाव दुख का कारण जान पड़ता है, इसलिए आचार्य ज्ञानसागरजी कहते थे-सुख को चाहने वालों के लिए दुख के कारण मोह के गहन भाव का त्यागकर देना चाहिए, क्योंकि आचार्य नेमिचंद्र महाराज ने भी कहा है- ‘मा मुज्झह' (मोह मत करो), मुनि शब्द का अर्थ भी यही ध्वनित होता है। जिसने मोह को नष्ट कर दिया एवं मोक्ष की अभिलाषा रखता है। पापों से मौन रहता है। वही मोह पर विजय प्राप्त कर सकता है।
आचार्यश्री के श्री मुख से
२७.०८.२००४, शुक्रवार