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मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता प्रारंभ ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • कथावस्तु

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    कथाओं के माध्यम से अपनी बात को जनता तक पहुँचाने में सफल रहे साधना के साधक, वाचना के प्रयोगधर्मी पूज्यश्री तपोनिष्ठ आचार्यप्रवर ज्ञानसागर जी महाराज। जो इतने अधिक ज्ञाननिष्ठ थे वे आराधना कथाकोश का आधार बनाकर अपनी बात कहते थे ऐसा ही एक प्रसंग आचार्य गुरुवर विद्यासागरजी के मुख से अनायास निकल पड़ा कि एक बार आचार्य गुरुदेव श्री ज्ञानसागरजी महाराज ने एक कहानी सुनाई थी कि-एक तपस्वी था पहाड़ों जंगलों पर रहता था, भोजन का समय जब आता था तब वह वृक्ष का तना चाटकर एक बार अपने स्थान पर वापस आ जाता था इससे उसकी आहार संज्ञा की पूर्ति हो जाती थी और इतने में ही उसका काम चल जाता था। एक बार अप्सराओं ने आकर लुभाना चाहा पर नहीं लुभा सकीं।एक दिन अप्सराओं ने छुपकर उसका पीछा किया और उन्होंने देख लिया कि तपस्वी क्या करता है? उन्होंने वृक्ष के तने में अमृत लगा दिया पुनः जब वह संन्यासी तपस्वी आया और उसने तना चाय तो उसे वह पहले से अधिक मीठा लगा, फिर सोचा एक बार और चाट लें फिर क्या था दुबारा चाटते ही उसकी तृष्णा बढ़ गई।

    दूसरे दिन फिर आया अब की बार उसने वृक्ष का तना तीन बार चाटा फिर पुनः आया तो चार बार चाटा इस प्रकार ५-७ बार संख्या बढ़ती ही गई अब क्या था वह बेचारा तृष्णा की आग में फँसकर अप्सराओं के चक्कर में आ गया आखिर अप्सराओं ने तपस्वी को लुभा ही लिया। तपस्वी साधु, संन्यासी, ऋषि, मुनि, व्रती होकर तृष्णा करे तो उसके तप का प्रभाव भी धीरे-धीरे लुप्त होता जाता है।

    ऐसी कहानियाँ सुनाकर वे बच्चों व वृद्धों का मन मोह लेते थे। अथक ज्ञानी जिनके ज्ञान की कोई थाह नहीं थी, वे ऐसी सरल-रोचक कहानी सुनाते भी देखे गये।

    मूलाचार प्रदीप,

    २२.०६.१९९९, मंगलवार,नेमावर


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